know your self

                                       पहेले आप पहचानो रे साधू पहेले आप पहचानो 
                               बिना आप चीन्हे पार ब्रम्ह को कोण कहे मैं जाणु 
                                                                                                                                                                                  महामति श्री प्राणनाथ जी
अर्थात इश्वर की पहचान करने क लिए पहेले खुद की पहचान करना जरुरी होता है क्योकि जब हम खुद की पेच्चान कर लेते है की हमारी आत्मा कोन है और कहाँ  आई है तब हम अपने इश्वर की पहचान कर लेते है 
 
 
अगर आप अपने आप को नहीं जानते, तो दूसरों को कैसे जानेंगे ?.....

स्वामी विवेकानंद एक कथा सुनाते थे। एक तत्वज्ञानी अपनी पत्नी से कह रहे थे, संध्या आने वाली है, काम समेट लो। एक शेर कुटी के पीछे यह सुन रहा था। उसने समझा संध्या कोई बड़ी शक्ति है, जिससे डरकर यह निर्भय ज्ञानी भी अपना सामान समेटने को विवश हुआ है। शेर चिंता में डूब गया। उसे 'संध्या' का डर सताने लगा। पास के घाट का धोबी दिन छिपने पर अपने कपड़े समेट कर गधे पर लादने की तैयारी करने लगा। देखा तो उसका गधा गायब। उसे ढूंढने में देर हो गई, रात घिर आई और बारिश भी शुरू हो गई।

धोबी को एक झाड़ी में खड़खड़ाहट सुनाई दी, वह समझा गधा है। वह लाठी से उसे पीटने लगा- 'धूर्त यहां छुपा बैठा है...' शेर थर थर कांपने लगा। धोबी उसे घसीट लाया और उस पर कपड़े लादकर घर चल दिया। रास्ते में एक दूसरा शेर मिला। उसने साथी की बुरी हालत देखी तो पूछा- 'क्या हुआ? तुम इस तरह लदे क्यों फिर रहे हो।' सिंह ने कहा-'संध्या के चंगुल में फंस गया हूं। यह बुरी तरह पीटती है और इतना वजन लाद देती है।'

शेर को कष्ट देने वाली संध्या नहीं, उसकी भ्रांति थी। इसके कारण धोबी को बड़ा देव-दानव समझ लिया गया और उसका भार और प्रहार बिना सिर हिलाए स्वीकार लिया गया। हमारी भी यही स्थिति है। अपने वास्तविक स्वरूप को न समझने और संसार के साथ, जड़ पदार्थों के साथ अपने संबंधों का ठीक तरह तालमेल न मिला सकने की गड़बड़ी ने ही हमें दुखी परिस्थितियों में धकेल दिया है। इनमें अंधकार के अलावा और कुछ दिखता ही नहीं। इस भ्रांति को ही 'माया' कहा गया है। 'माया' को ही बंधन कहा गया है और दुखों का कारण बताया गया है। यह माया हमारा अज्ञान है।

संसार में जानने को बहुत कुछ है, पर सबसे महत्वपूर्ण जानकारी अपने आप के संबंध की है। उसे जान लेने पर बाकी जानकारियां प्राप्त करना सरल हो जाता है। ज्ञान का आरंभ आत्मज्ञान से होता है। जब हम अपने आप को नहीं जानते, तो दूसरों को कैसे जानेंगे।

बाहर की चीजें ढूंढने में मन इसलिए लगा रहता है कि अपने को ढूंढने के झंझट से बचा जा सके। क्योंकि जिस स्थिति में आज हम है, उसमें अंधेरा और अकेलापन दीखता है। मनुष्य ने स्वयं ही अपने को डरावना बना लिया है और भयभीत होकर स्वयं ही भागता है। अपने को देखने, खोजने और समझने की इच्छा इसीलिए नहीं होती। मन बहलाने के लिए हम बाहर की चीजें खोजते हैं।
क्या सचमुच भीतर अंधेरा है? क्या हम वाकई अकेले और सूने हैं? नहीं, प्रकाश का ज्योतिपुंज अपने भीतर मौजूद है। एक पूरा संसार ही अपने भीतर है। उसे पाने और देखने के लिए आवश्यक है कि मुंह अपनी ओर हो। पीठ फेर लेने पर तो सूर्य भी दिखाई नहीं पड़ता।

बाहर केवल जड़ जगत है, पंच भूतों का बना हुआ, निर्जीव। बहिरंग दृष्टि लेकर तो हम जड़ता ही देख सकेंगे। अपना जो स्वरूप आंखों से दिखता, कानों से सुनाई पड़ता है, जड़ है। ईश्वर को भी यदि बाहर देखा जाएगा तो उसके रूप में जड़ता या माया ही दिखेगी। अंदर जो है, वही सत् है। इसे अंतर्मुखी होकर देखना पड़ता है। आत्मा और उसके साथ जुडे़ हुए परमात्मा को देखने के लिए अंतदृष्टि की आवश्यकता है। इस प्रयास में अंतर्मुखी हुए बिना काम नहीं चलता।
स्वर्ग, मुक्ति, सिद्धि, शांति आदि विभूतियों की खोज में कहीं और जाने की जरूरत नही है। हमारी श्रुतियां कहती हैं- अपने आप को जानो, अपने को प्राप्त करो और अमृतत्व में लीन हो जाओ। तत्वज्ञानियों ने उसे ही सारी उपलब्धियों को सार कहा है। क्योंकि जो बाहर दिख रहा है, वह भीतरी तत्व का विस्तार है। अपना आपा जिस स्तर का होता है, संसार का स्वरूप वैसा ही दिखता है।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Ambition quotes in hindi

Motivational quotes with hindi translation

APJ abdul kalam quotes with hindi translation